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यह एडिटोरियल द लाइवमिंट में प्रकाशित “Rajya Sabha approves three codes subsuming 25 central labour laws” लेख पर आधारित है। यह हाल ही में संसद द्वारा पारित की गईं तीन श्रम संहिताओं का मूल्यांकन करता है।
संदर्भ
श्रम संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है। हाल ही में संसद ने औद्योगिक संबंधों पर, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर तीन श्रम संहिताएँ पारित की हैं जो देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और श्रमिकों के लाभों से समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिये प्रस्तावित हैं। ये श्रम संहिता भारत में श्रम संबंधों पर एक परिवर्तनकारी प्रभाव डाल सकती हैं। श्रम संहिता अधिनियम (Code on Wages Act 2019) के साथ ये श्रम पर केंद्रीय और राज्य कानूनों की व्यापकता को समेट कर व्यवसाय के संचालन को आसान बना सकते हैं। श्रम संहिता को द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) की सिफारिशों पर अपनाया गया था, जिसमें उद्योगों, व्यवसायों और क्षेत्रों में 100 राज्य कानूनों एवं 40 केंद्रीय कानूनों को समेकित करने का सुझाव दिया गया था।
मौजूदा श्रम संहिता में समाहित कानून
- सामाजिक सुरक्षा संहिता सामाजिक सुरक्षा पर नौ कानूनों की जगह लेती है जिसमें कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 शामिल हैं।
- औद्योगिक संबंध संहिता औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1974, व्यापार संघ अधिनियम, 1926, और औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946।
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता 13 श्रम कानूनों की जगह लेती है।
तीन श्रम संहिताओं में मुख्य प्रस्ताव
औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020
- इस संहिता के महत्त्वपूर्ण प्रावधानों में कंपनियों में काम करने वाले श्रमिकों को काम पर रखने और उनकी छंटनी करने को आसान बनाना है।
- औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों के लिये 300 से अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाली कंपनियों को आचरण के नियमों की आवश्यकता नहीं होगी। वर्तमान में 100 श्रमिकों तक काम करने वाले प्रतिष्ठानों के लिये यह अनिवार्य है।
- वर्तमान में केवल सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं में श्रमिकों को हड़ताल करने के लिये नोटिस देने की आवश्यकता होती है।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति सहिंता विधेयक, 2020
- यह नियोक्ताओं और श्रमिकों के कर्त्तव्यों को पूरा करता है और विभिन्न क्षेत्रों के लिये सुरक्षा मानकों की परिकल्पना करता है, जिसमें श्रमिकों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, काम के घंटे, छुट्टियाँ आदि शामिल हैं।
- संहिता संविदाकर्मियों के अधिकार को भी मान्यता देती है।
- संहिता नियोक्ताओं को किसी भी क्षेत्र में आवश्यकता के आधार पर और बिना किसी प्रतिबंध के निश्चित अवधि के आधार पर श्रमिकों को नियुक्त करने की सुविधा प्रदान करती है।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह सामाजिक सुरक्षा जैसे वैधानिक लाभों के लिये और स्थायी कर्मचारियों को उनके स्थायी समकक्षों के बराबर वेतन देने का भी प्रावधान करता है।
- ओवरटाइम के मामले में किसी कर्मचारी को उसके वेतन का दोगुना भुगतान किया जाना चाहिये। यह उन छोटे प्रतिष्ठानों पर भी लागू होगा जिनके पास 10 श्रमिक हैं।
- पहली बार श्रम संहिता भी ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को मान्यता देती है। यह औद्योगिक प्रतिष्ठानों को पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर कर्मचारियों के लिये वॉशरूम, स्नान स्थल और लॉकर रूम प्रदान करना अनिवार्य बनाता है।
सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020
- यह नौ सामाजिक सुरक्षा कानूनों की जगह लेगा जिनमें मातृत्व लाभ अधिनियम, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, कर्मचारी पेंशन योजना, कर्मचारी मुआवजा अधिनियम अन्य शामिल हैं।
- संहिता असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों श्रमिकों जैसे कि प्रवासी श्रमिकों, गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा कवरेज को सार्वभौमिक बनाती है।
- पहली बार सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों को कृषि श्रमिकों के लिये भी बढ़ाया जाएगा।
- संहिता सभी प्रकार के कर्मचारियों के लिये ग्रेच्युटी भुगतान प्राप्त करने की समय सीमा को पांच वर्ष से एक वर्ष की निरंतर सेवा तक कम करता है, जिसमें निश्चित अवधि के कर्मचारी, अनुबंध श्रम, दैनिक और मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं।
श्रम संहिताओं के लाभ
- जटिल कानूनों का समेकन और सरलीकरण: ये तीन संहिता 25 केंद्रीय श्रम कानूनों को कम करके श्रम कानूनों को सरल बनाती हैं।
- यह उद्योग और रोज़गार को बढ़ावा देगा और परिभाषाओं की बहुलता और व्यवसायों के लिये प्राधिकरण की बहुलता को कम करेगा।
श्रम संहिता से संबंधित चिंताएँ